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Monday, September 22, 2025

बांग्लादेश में शेख हसीना के खिलाफ छात्रों का बड़ा ऐलान

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बांग्लादेश में 2024 में सरकारी नौकरियों में कोटा प्रणाली के खिलाफ शुरू हुआ छात्र आंदोलन, जिसे ‘বৈষম্যবিরোধী ছাত্র আন্দোলন’ (विषम्यबिरोधी छात्र आंदोलन) के नाम से जाना जाता है, ने देश की राजनीति में महत्वपूर्ण परिवर्तन लाए। इस आंदोलन के परिणामस्वरूप तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख हसीना को 5 अगस्त 2024 को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा और देश छोड़ना पड़ा।

आंदोलन की पृष्ठभूमि

1 जुलाई 2024 को, बांग्लादेश के छात्रों ने सरकारी नौकरियों में 56% कोटा प्रणाली के खिलाफ विरोध प्रदर्शन शुरू किया। उनका तर्क था कि यह प्रणाली योग्यता-आधारित नियुक्तियों में बाधा डालती है और असमानता को बढ़ावा देती है। इस आंदोलन का नेतृत्व ‘বৈষম্যবিরোধী ছাত্র আন্দোলন’ ने किया, जो एक गैर-राजनीतिक छात्र संगठन है।

आंदोलन की प्रमुख घटनाएँ

  • 2 जुलाई 2024: ढाका में छात्रों ने कोटा प्रणाली के खिलाफ बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन किया।

  • 10-12 जुलाई 2024: ‘বাংলা ব্লকেড’ कार्यक्रम के तहत छात्रों ने राजधानी और प्रमुख राजमार्गों पर अवरोध किया, जिससे यातायात बाधित हुआ।

  • 14 जुलाई 2024: प्रधानमंत्री शेख हसीना ने एक संवाददाता सम्मेलन में कोटा विरोधी छात्रों की आलोचना की, जिससे छात्रों में आक्रोश बढ़ा।

  • 15 जुलाई 2024: ढाका विश्वविद्यालय में छात्रों और छात्र लीग के सदस्यों के बीच हिंसक झड़पें हुईं, जिसमें सैकड़ों लोग घायल हुए।

  • 18 जुलाई 2024: देशव्यापी ‘पूर्ण शटडाउन’ के दौरान पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच हिंसक संघर्ष हुए, जिसमें कई लोग मारे गए।

शेख हसीना का इस्तीफा और उसके बाद की स्थिति

लगातार बढ़ते जन दबाव और हिंसक घटनाओं के बाद, 5 अगस्त 2024 को प्रधानमंत्री शेख हसीना ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया और देश छोड़कर चली गईं। इसके बाद, सेना प्रमुख जनरल वाकर-उज-जमान ने एक अंतरिम सरकार के गठन की घोषणा की और सभी मौतों की जांच का आश्वासन दिया।

आंदोलन के प्रभाव

इस आंदोलन ने बांग्लादेश की राजनीतिक संरचना में महत्वपूर्ण बदलाव लाए। अंतरिम सरकार ने कोटा प्रणाली में सुधार के लिए कदम उठाए और छात्रों की मांगों को पूरा करने के लिए नीतिगत परिवर्तन किए। इसके अलावा, यह आंदोलन बांग्लादेश में लोकतांत्रिक मूल्यों और सामाजिक न्याय की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जाता है।

इस प्रकार, ‘বৈষম্যবিরোধী ছাত্র আন্দোলন’ ने बांग्लादेश में न केवल कोटा प्रणाली में सुधार लाया, बल्कि देश की राजनीतिक दिशा को भी नया मोड़ दिया।

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