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एक राष्ट्र, एक चुनाव’ से संबंधित दो विधेयक लोकसभा में पेश किए गए

एक राष्ट्र, एक चुनाव' से संबंधित दो विधेयक लोकसभा में पेश किए गए

एक राष्ट्र, एक चुनाव' से संबंधित दो विधेयक लोकसभा में पेश किए गए

भारत के लोकतांत्रिक ढांचे में सुधार की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए, केंद्र सरकार ने ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ की अवधारणा को साकार करने के लिए दो विधेयक लोकसभा में पेश किए हैं। इन विधेयकों का उद्देश्य लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनावों को एक साथ आयोजित करना है, जिससे चुनावी प्रक्रियाओं में सुधार, संसाधनों की बचत, और शासन में स्थिरता लाई जा सके।

विधेयकों का परिचय

17 दिसंबर 2024 को केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने लोकसभा में दो प्रमुख विधेयक प्रस्तुत किए:

  1. संविधान (129वां संशोधन) विधेयक, 2024: यह विधेयक संविधान के अनुच्छेद 83, 172, और 327 में संशोधन का प्रस्ताव करता है, जिससे लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए जा सकें। इसमें एक नया अनुच्छेद 82क जोड़ने का भी प्रावधान है, जो एक साथ चुनावों की प्रक्रिया को स्पष्ट करता है।

  2. केंद्र शासित प्रदेश कानून (संशोधन) विधेयक, 2024: इसका उद्देश्य दिल्ली, पुडुचेरी, और जम्मू-कश्मीर जैसे केंद्र शासित प्रदेशों के चुनाव चक्र को ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ योजना के अनुरूप बनाना है।

विधेयकों की प्रमुख विशेषताएं

ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य

1951-52 से लेकर 1967 तक, भारत में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ आयोजित किए जाते थे। हालांकि, 1968-69 में कुछ विधानसभाओं के समय से पहले भंग होने के कारण यह प्रणाली बाधित हुई। अब, ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ की पहल उसी परंपरा को पुनः स्थापित करने का प्रयास है।

समर्थन और विरोध के तर्क

इस पहल के समर्थकों का मानना है कि एक साथ चुनाव कराने से:

वहीं, विरोधियों का तर्क है कि:

आगे की प्रक्रिया

विधेयकों के लोकसभा में पेश होने के बाद, इन्हें विस्तृत चर्चा और समीक्षा के लिए संसद की संयुक्त समिति (JPC) के पास भेजा जाएगा। यह समिति विभिन्न राजनीतिक दलों, कानूनी विशेषज्ञों, और जनता से परामर्श लेकर अपनी सिफारिशें प्रस्तुत करेगी। इसके पश्चात, संसद के दोनों सदनों में विधेयकों पर मतदान होगा। संविधान संशोधन के लिए दो-तिहाई बहुमत आवश्यक है, जो सरकार के लिए एक चुनौतीपूर्ण कार्य हो सकता है।

निष्कर्ष

‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ की पहल भारतीय लोकतंत्र में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन का प्रस्ताव है। इससे चुनावी प्रक्रियाओं में सुधार, संसाधनों की बचत, और शासन में स्थिरता की उम्मीद है। हालांकि, इसके सफल कार्यान्वयन के लिए संवैधानिक संशोधनों, राजनीतिक सहमति, और व्यापक सार्वजनिक समर्थन की आवश्यकता होगी। यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले समय में यह पहल किस दिशा में अग्रसर होती है।

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